👍 सोचिये न!
(गीतिका में चयनित सर्वश्रेष्ठ काव्य।)
✍️ महेश जैन 'ज्योति'
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1
मत किसी से होड़ करना, है बुरी ये बात।
पीढ़ियों को दे रहे हम, क्या नयी सौगात।।
2
सींचतीं जड़़ हैं सभी को, सम रखें उर भाव।
एक से फिर भी न उगते, पुष्प हों या पात।।
3
हो अगर उद्विग्न मन तो, लुप्त होता चैन।
बीतती करवट बदलते, जाग सारी रात।।
4
व्यर्थ वैभव है दिखाना, ये बढ़ाता द्वेष।
पाटिये इन खाइयों को, दो नहीं आघात।।
5
छोड़ सुख की राह बढ़ते, जा रहे किस ओर।
सोचिये तो हो गये क्यों, रुग्ण सबके गात।।
6
वक्त अब भी है समझिये, जिन्दगी का मोल।
क्या कहे गीता समझ तो, आज फिर से तात।।
7
ज्योति का है कर्म जलना, है उसे अहसास।
चल रही हों आँधियाँ या, हो घनी बरसात।।
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✍️ महेश जैन 'ज्योति',मथुरा (उत्तर प्रदेश)