💐 किसान 💐
(गीतिका में चयनित श्रेष्ठ काव्य!)
✍️ मनोज द्विवेदी
भाग्य देश का सदा किसान लेखता।
खेत में विकास के निशान देखता।
खाद - बीज साथ रक्त प्राण बो रहा।
चेतना सुषुप्त देख डाँड़ सो रहा।।
है उदास रात शीत कांपती निशा।
नींद क्या उनींद मीत झाँपती दिशा।
वृक्ष हैं विशाल सुप्त पीत पत्र हैं।
स्यार बोलते सिवान यत्र - तत्र हैं।।
सो रहा अलाव सुप्त और हो गया।
अग्नि की शिखा बुझी सुपौर खो गया।
तीव्र है तुषार भीगता किसान है।
देंह में बचा हुआ सुसुप्त प्रान है।।
शीत की भयावनी चले वहाँ हवा।
हाड़ काँपता परन्तु थी कहाँ दवा।
मौन आग ताप खेत सींचता रहा।
अश्रु रोक आँख मात्र भींचता रहा।।
✍️ मनोज द्विवेदी
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