वो जिंदगी भर दूर, मौत पर करीब बैठे रहे!
👌निरेन कुमार सचदेवा
किसी शायर ने मौत को ख़ूब कहा है ,
ज़िंदगी में तो कोई,
दो मिनिट मेरे पास ना बैठा,
अब सब मेरे पास बैठ रहे थे।
वो आख़िरी पल जब,
सब क़रीबी मेरे पास बैठे थे,
वो दिन मुझे अब भी,
अच्छी तरह याद है,
वो दिन था जब,
मैंने लिखी थी अपनी वसीयत,
यक़ीनन है पैसे की,
इंसान से ज़्यादा क़ीमत।
सोचो तो मिट्टी से उठा,
फिर मिट्टी में मिल जाना है,
मिला जो कुछ मुझे दुनिया में,
सब यहीं रह जाना है,
और हड्डियों को गंगा में बह जाना है।
तो फिर इतना ग़ुरूर,
इतना गुमान क्यूँ हैं?
मुझे मुझ पर,
जब कुछ भी साथ नहीं जाना है।
सिकंदर जैसे हमें भी,
ख़ाली हाथ ही जाना है।
फिर सोचा मैंने कि बस,
मिल जाए दो गज़ ज़मीन,
वो ही है मेरी मलकियत,
मौत तूने तो मुझे,
ज़मीनदार बना दिया है,
मतलब मेरे अस्तित्व का,
आज मुझे सिखा दिया है।
ये रुतबा, ये मलकियत,
ये दौलत, ये हैसियत,
ये हाथी घोड़े कुछ भी,
साथ नहीं जाना है,
सब कुछ यहीं रह जाना है।
दफ़ना दिए जाओगे तुम एक दिन,
क़ब्र की गहराई और नाप तो,
सब के लिए एक सा ही होगा,
कोई राजा हो या रंक,
कोई अमीर हो या फ़क़ीर।
ये ख़ज़ाने, ये आभूषण,
ये सोने चाँदी के सिक्के,
ये वेश भूषा, ये महल,
गम्भीरता से सोचो,
तो ये सब मिथ्या है,
बस मौत ही एक सत्य है।
तमाम ज़िंदगी में शायद,
किसी ने एक,
तोहफ़ा तक नहीं दिया मुझे,
और आज मृत्यु पश्चात,
हार दिए जा रहें हैं,
दिए जा रहें हैं फूल ही फूल,
शायद ये लोग कर रहें है कोई भूल!
तरसता रहा मैं जीवन भर कि कोई,
मुझ से दो मीठी बात कर ले,
कोई हाथ थाम ले मेरा,
ग़म ले मेरा बाँट,
लेकिन मिली थी सिर्फ़ मायूसी,
सुनने को मिलती थीं सिर्फ़,
कड़वी बातें और डाँट।
और आज क्यूँ ये लोग,
कंधे पर कंधे दिए जा रहें हैं,
जब आज मुझे,
शमशान घाट लिए जा रहें हैं।
बेबसी, अकेलापन, बेजारी,
यही थी मेरी ज़िंदगी की दास्तान,
कोई दो क़दम साथ,
चलने को तैयार ना था,
और आज,
मेरे शव के साथ,
चल रहा है क़ाफ़िला।
अह काश,
कि इन लोगों ने,
मेरेजीते जी भी,
दिया होता मुझे हौंसला।
ज़िंदगी में बस दर्द,
और पीड़ा ही देखी,
बहुत सिसकियाँ भरी,
जब अपनों ने त्याग दिया,
तो उन्हें याद कर,
बहुत हिचकियाँ लीं।
आज मुझे पता चला,
कि “मौत” कितनी हसीन होती है।
हम तो कमबख़्त यूँ ही,
जिए जा रहे थे,
ख़ून के आँसू पिए जा रहे थे।
उम्मीद है कि अब तो,
कुछ सुकून मिलेगा,
कम से कम इन ख़ुदगर्ज़,
मौक़ापरस्त बाशिंदों से तो
पीछा छूटेगा।
ख़ैर वैसे तो मालूम है मुझे कि,
लोग या कोई अपने भी,
मुझे कभी याद ना करेंगे।
लेकिन जो दौलत,
अपनी वसीयत में मैंने,
चंद अपनों के नाम लिखी है,
वो भी मजबूरी में,
अदालती कारवाई के दौरान,
मेरा नाम लेंगे !!
"These few lines depict the harsh reality of life !!": Niren
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